Barbigha:-आधुनिकता के इस युग में कई सारी पारंपरिक चीज खोती जा रही है.मिट्टी के बर्तन भी उन्हीं में से एक माने जा रहे हैं.हालांकि इस दीपावली पर कुंभकारों को लोगों से काफी उम्मीद है. दीपोत्सव का त्योहार दीपावली बस कुछ ही दिनों के बाद आने वाला है. ऐसे में अगर आम लोग मिट्टी के दिए उपयोग करेंगे तो अपने घर जगमग होने के साथ-साथ मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुंभकारों के घरों में भी खुशियों की रोशनी जगमगाएगी. मिट्टी के दिए से न केवल मेहनतकश लोगों के घरों में खुशियां आती है, बल्कि पर्यावरण को भी काफी लाभ पहुंचता है. मिट्टी के दीपक जलाने से पर्यावरण में अनचाहे कीट पतंग उससे टकराकर मौत को प्राप्त करते हैं. कीट पतंगो में कमी होने के कारण रवि फसलों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता है.
हालांकि चाइनीस लाइटों के प्रयोग ने मिट्टी के दिए के उपयोग में काफी गिरावट लाई है. इसके बावजूद
बरबीघा नगर परिषद क्षेत्र के सामाचक मोहल्ले में करीब 40 कुंभकारों के घरों के लोग आज भी अपने पुश्तैनी धंधे में लगभग कई पीढ़ियों से लगा हुआ है.इस बार भी मिट्टी के दिए बिकने की उम्मीद पर लाखों मिट्टी के दिए बनाए गए हैं.
बुजुर्ग वर्षीय ब्रह्मदेव और सुखदेव पंडित भी बना रहे मिट्टी के बर्तन
करीब पांच दशकों से 85 वर्षीय सुखदेव पंडित और 80 वर्षीय ब्रह्मदेव पंडित मिट्टी के बर्तन बनाने के कारोबार से जुड़े हुए हैं. दोनों ने बताया कि जिस समय उन्होंने मिट्टी के बर्तन बनाने शुरू किए थे,उस समय दो या तीन ने ने में बिकते थे.उस समय मिट्टी के बर्तनों का काफी डिमांड हुआ करता था. रोटी बनाने के लिए मिट्टी का तवा, पानी रखने के लिए के लिए घड़ा, दाल और चावल बनाने के लिए हांडी तथा बच्चों के लिए तरह-तरह के मिट्टी के खिलौने आदि का प्रयोग लोग खूब करते थे. मिट्टी के बर्तन में बने खानों की सोंधी खुशबू लोगों को खूब भाती थी.लेकिन आधुनिकता के इस युग में धीरे-धीरे मिट्टी के बर्तनों को लोग भूल गए. मिट्टी के बर्तन के जगह एलमुनियम स्टील और पीतल आदि के बर्तनों ने उसका रूप ले लिया. अब सिर्फ दीपावली के मौके पर ही मिट्टी के दिए बिकने से अच्छे कारोबार की उम्मीद रहती है. लेकिन हाल के दिनों में चीनी लाइटों की बढ़ती चलन ने उस धंधे को भी चौपट कर दिया है. कई लोग तो मिट्टी के बर्तन बनाने के पारंपरिक कारोबार से अपना मुंह मोड़ लिया है.आलम यह है कि कुंभकारों के सामने अब रोजी-रोटी का भी संकट खड़ा होने लगा है.
सोशल मीडिया पर जागरूकता से बढ़ रही डिमांड
मिट्टी के बर्तन बनाने के व्यवसाय से जुड़े लोगों ने बताया कि सोशल मीडिया पर लगातार चल रहे जागरूकता अभियान के कारण मिट्टी के दिए की मांग में कुछ बढ़ोतरी हुई है. इसके अलावा कोरोना काल के दौरान चाय पीने के लिए मिट्टी के गिलास का भी मांग काफी बढ़ा है. इसके बावजूद इस कारोबार से उतना ही आमदनी हो रहा जितना में परिवार का दाल रोटी चल जाता है.लोगों ने बताया कि चाह कर भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दिलवा पाते हैं. मजबूरी का आलम इसी से लगाया जा सकता है कि 80 और 85 वर्षीय बुजुर्ग अभी भी मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए विवश है. 85 वर्षीय सुखदेव पंडित ने बताया कि उन्हें कोई पुत्र नहीं है. अगर बर्तन नहीं बनाएंगे तो दवा और खाने के अभाव में मर जायेंगे
धन की देवी मां लक्ष्मी को भी भाता है मिट्टी का दिया
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दीपावली के दिन मिट्टी के दीयों का ही प्रयोग करना चाहिए. इससे धन की देवी मां लक्ष्मी के प्रसन्न होने के साथ-साथ गरीबों के घरों तक भी खुशियों की रोशनी पहुंचती है. यही नहीं मिट्टी का दीपक जलाने से पर्यावरण से कीट पतंग का सफाया हो जाता है और फसलों को सुरक्षा भी मिलती है. पर्यावरण की सुरक्षा और गरीबों के घर में खुशियां लाने के उद्देश्य से लोगों को मिट्टी के दीपक का प्रयोग करना चाहिए ताकि मिट्टी को आकार देने वाले कुंभकारों के मुरझाए परिवारों के चेहरे पर भी खुशियों की रोशनी आ सके.हमसब प्रण ले कि इस त्यौहार मिट्टी के दिए ही खरीदेंगे ताकि दूसरों के घर भी जगमग कर सके.