जब 61 वर्ष की उम्र में किडनी देकर पुत्र के लिए साक्षात भगवान बन गई थी एक माँ..Mothers day special

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Barbigha:-आज मदर्स डे है.मां के प्रति प्रेम सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए भारत समेत पूरी दुनिया में मदर्स डे मनाया जाता है.मां शब्द की जब भी चर्चा होती है तो प्रशंसा में शब्द कम पड़ जाते हैं. किसी ने कहा है कि ईश्वर सभी जगह नहीं पहुंच सकते शायद इसीलिए दुनिया में माँ को बनाया है.मां केवल बच्चों को जन्म में नहीं देती बल्कि जीवन भर अपने बच्चों के प्रति सुख दुख में शामिल रहती है.

इस मदर्स डे पर आज आपको ऐसी मां के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने अपने जीवन काल में अपने पुत्र को दो बार जीवन दिया है.एक बार जन्म देकर और एक बार मृत्यु के मुहाने पर खड़े अपने पुत्र को 61 वर्ष की उम्र में किडनी देकर जीवनदान दिया.वो महिला कोई और नही बल्कि बरबीघा के प्रतिष्ठित निजी विद्यालय डिवाइन लाइट पब्लिक स्कूल के प्राचार्य सुधांशु शेखर की मां,स्व० मालती देवी है.



मालती देवी मूल रूप से भागलपुर जिला के नवगछिया अनुमंडल अंतर्गत तेलघी गांव निवासी किसान स्व० सीताराम सिंह की पत्नी थी. मालती देवी तीन पुत्री और एकमात्र पुत्र सुधांशु शेखर की माँ थी. सुधांशु शेखर ने बताया कि अक्टूबर 1985 में मेरे पिता की लंबी बीमारी की वजह से मौत हो गई थी.विपरीत परिस्थितियों से जूझकर मालती देवी ने सभी बच्चों को पाल पोशकरबड़ा किया.तीन बच्चियों की शादी करने के बाद में पुत्र सुधांशु शेखर के साथ बरबीघा रहने के लिए आ गई.

इस दौरान भगवान ने एक और कठिन परीक्षा लिया और सुधांशु शेखर की दोनों किडनी फेल हो गई.परिवार के सदस्यों ने इलाज के लिए दिल्ली से लेकर वेल्लोर तक का सफर किया लेकिन असफल रहे. लेकिन मालती देवी ने हार नहीं मानी. वह अपने बेटे को अपने आंखों के सामने कभी भी मरते देखा नहीं चाहती थी. आखिरकार वर्ष 2007 में लाख मना करने के बावजूद उन्होंने अपने पुत्र को किडनी देने का निर्णय लिया. डॉक्टर ने साफ-साफ कहा था कि दौरान मालती देवी की जान भी जा सकती है. लेकिन मालती देवी ने कहा कि पुत्र नहीं रहेगा तो मैं जी कर क्या करूंगी.

आखिरकार वर्ष 2007 में पीजीआई चंडीगढ़ में सुधांशु शेखर का सफल किडनी प्रत्यारोपण किया गया. इसके बाद लोगों ने कहा कि मां इस धरती पर साक्षात भगवान के रूप में बिराजमान होती है. अपने पुत्र को दूसरी बार जीवन देने वाले मालती देवी का वर्ष 2020 में ब्रेन ट्यूमर की वजह से 75 वर्ष की उम्र में निधन हो गया.सुधांशु शेखर आज भी अपनी मां को याद कर भावुक हो उठते हैं. सुधांशु शेखर कहते हैं कि मुझे जब भी भगवान को देखने की लालसा होती मैं अपनी मां के पास चला जाता था. इस मदर्स डे पर आज मेरे पास जीवन की हर सुख सुविधा है.लेकिन माँ रूपी भगवान की कमी आज भी जीवन में खल रही है.मैं सौभाग्यशाली हूं कि मुझे कई वर्षों तक उस भगवान की सेवा करने का अवसर मिला. ऐसे मां को बारंबार प्रणाम और नमन है.

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