Desk:-आज के राजनीतिक परिदृश्य में लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) आरएसएस (RSS) और बीजेपी (BJP) का विरोध करने वालों में सबसे बड़ा नाम हैं. लेकिन हमेशा ऐसा नहीं रहा है.एक समय ऐसा भी आया था जब लालू ने बीजेपी से समर्थन लेकर बिहार में अपनी सरकार बनाई थी.यह भी कह सकते हैं कि लालू यादव पहली बार बीजेपी के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बने थे.यह वह दौर था जब देश में मंडल और कमंडल की राजनीति जोर पर थी. लेकिन कांग्रेस विरोध के नाम पर दोनों दल साथ आ गए थे.लालू के एक कदम ने दोस्ती को हमेशा-हमेशा के लिए तोड़ दिया.इसके बाद लालू बीजेपी और आरएसएस विरोध के प्रतीक बन गए.
हम बात कर रहे हैं 1990 के दशक की.बोफोर्स कांड के बाद कांग्रेस से बगावत करने वाले वीपी सिंह प्रधानमंत्री बन चुके थे. साल 1990 में हुए बिहार की 10वीं विधानसभा चुनाव के समय देश में मंडल और राम मंदिर आंदोलन का जोर था. लेकिन कांग्रेस के विरोध में मंडल और कमंडल की राजनीति करने वाले दल एक साथ आ गए थे.केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार चल रही थी.उसे बीजेपी बाहर से समर्थन दे रही थी.
इस दौरान 1990 में बिहार में विधानसभा के चुनाव कराए गए. 324 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस को केवल 71 सीटें ही मिलीं.वहीं जनता दल को 122 सीटें मिली थीं. सरकार बनाने के लिए 163 सदस्यों के समर्थन की जरूरत थी. ऐसे में जनता दल को बिहार में सरकार बनाने के लिए 41 सदस्यों के समर्थन की जरूरत थी. उस चुनाव में बीजेपी को 39 सीटें मिली थीं. बीजेपी ने सरकार बनाने के लिए जनता दल को समर्थन दिया.नया नेता चुनने के लिए जनता दल के विधायकों की बैठक हुई. इसमें प्रधानमंत्री वीपी सिंह की पहली पसंद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और दलित नेता राम सुंदर दास. लेकिन उपप्रधानमंत्री चौधरी देवी लाल और चंद्रशेखर की मदद से अपनी दावेदारी पेश की.विधायक दल की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास और लालू यादव के बीच मुकाबला हुआ.इसमें लालू यादव ने बाजी मार ली. इसके बाद लालू यादव ने 10 मार्च 1990 को बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
उधर मंडल और कमंडल की यह दोस्ती बहुत दिनों तक नहीं चली.उन दिनों पैर पसार रही मंडल की राजनीति से मुकाबला करने के लिए बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा शुरू की. यह रथयात्रा अयोध्या में राम मंदिर के लिए समर्थन जुटाने के लिए थी.मंडल की राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी को 23 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर में गिरफ्तार करवा दिया. इससे नाराज हुई बीजेपी ने केंद्र की वीपी सिंह सरकार और बिहार की लालू प्रसाद यादव की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया.
बीजेपी के समर्थन वापसी से वीपी सिंह की सरकार तो गिर गई. लेकिन लालू अपनी सरकार बचा पाने में कामयाब रहे. लालू ने बीजेपी में ही बगावत करवा दी.इस बगावत के सूत्रधार बने थे बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष इंदरसिंह नामधारी. लालू की सरकार को बीजेपी के बागियों के अलावा सीपीआई के 23,सीपीएम के 6, झारखंड मुक्ति मोर्चा के 19, आईपीएफ के सात और कुछ निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिला.
लेखक एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार हैं