Sheikhpura: जिले के बरबीघा प्रखंड क्षेत्र के काशीबिगहा गांव निवासी प्रगतिशील किसान विनोद सिंह अन्य किसानों के लिए आज भी आदर्श बने हुए हैं. जैविक विधि से विभिन्न प्रकार के फसलो की खेती करके लाखों की कमाई करने वाले किसान विनोद सिंह कई पुरस्कारों से सम्मानित भी हो चुके हैं. इस बार भी उन्होंने एक हेक्टेयर में स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लाभदायक काले धान की खेती जैविक विधि से किया है. काले धान की विधिवत रोपाई किसान सलाहकार महेश मल्लिक की देखरेख में किया गया. इस संबंध में किसान विनोद सिंह ने बताया कि काले धान की खेती करने में बहुत सारे सावधानियां बरती जाती है. इसमें 8 से 12 दिन के बीच का ही बिचड़ा रोपा जाता है. इसके अलावा केचुआ और जैविक खाद का प्रयोग होता है. एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 25 सेंटीमीटर रखी जाती है. धान की निकौनी “कोनो वीडर” तकनीक से किया जाता है. अच्छे से खेती करने पर इसकी बंपर पैदावार होती है.एक एकड़ में सामान्यतः 80 से लेकर 100 मन तक धान होते हैं. रोपाई से पहले खेत में 3 सेंटीमीटर से ज्यादा पानी नहीं होना चाहिए.
काला धान स्वास्थ्यवर्धक गुणों की खान
कालाधान मधुमेह और रक्तचाप के मरीजों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं. इसका नियमित सेवन से न केवल उन्हें दवाइयों से छुटकारा दिला सकता है बल्कि कुछ समय बाद वह सामान्य जीवन जीने लगेंगे. काला धान में एंटीऑक्सीडेंट के गुण भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं. इसमें कॉफी से भी ज्यादा एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है. एंटी ऑक्सीडेंट हमारे बॉडी को डिटॉक्स और क्लीन करने का काम करता है. आज के प्रदूषित वातावरण और मिलावटी फुड से जंग लड़ने के लिए हर इंसान को इसकी आवश्यकता है. काला धान में प्रचुर मात्रा में एंटीकैंसर तत्व भी पाए जाते हैं. इस धान से निकले चावल में विटामिन बी, ई के अलावा कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन तथा जिंक आदि प्रचुर मात्रा में मिलता है. इसके सेवन से रक्त शुद्धीकरण भी होता है. साथ ही इस चावल के सेवन से चर्बी कम करने तथा पाचन शक्ति बढ़ने की बात कही जाती है.
जैविक खाद से उपजा अनाज स्वास्थ्य के लिए होता है लाभदायक
किसान विनोद सिंह ने बताया कि आज धड़ल्ले से सभी प्रकार के फसलों में यूरिया का उपयोग किया जा रहा है. धान की अधिक पैदावार के चक्कर में एक किसान अत्यधिक यूरिया का प्रयोग करते हैं. जो चावल की गुणवत्ता के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर डालता है. इसी को ध्यान में रखते हुए जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए इस बार काले धान की रोपाई की जा रही है.
धान की रोपाई के लिए क्या है श्री विधि तकनीक
धान खरीफ़ सीजन की एक प्रमुख फसल है. देश के अधिकतर किसान इस फसल की खेतीकरते हैं.धान की रोपाई करने में काफी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है इससे किसानों का समय और लागत दोनों अधिक लगता है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों के लिए धान की रोपाई के लिए एक नई तकनीक विकसित की गई जिसे श्री विधि का नाम दिया गया. इसके तहत केवल एक एकड़ के लिए दो किलो बीज ही पर्याप्त माना जाता है. इस विधि के तहत धान के विचड़ो को तैयार करने से पूर्व खेत में गोबर की खाद या फिर केंचुआ का खाद डाला जाता है. उसके बाद रोपनी से पूर्व धान के खेत की तैयारी परंपरागत तरीके से की जाती है. इसके लिए सबसे पहले भूमि को समतल बना दिया जाता है.पौधरोपण के 12 से 24 घंटे पहले खेत में मात्र एक से तीन सेंटीमीटर पानी होना चाहिए. पौधों को 10 गुना 10 इंच की दूरी पर एक निशान के सहयोग से रोपा जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस तकनीक के प्रयोग से धान की उपज अच्छी होती है.