देश की आजादी में बरबीघा के वीर सपूतों ने निभाई थी अहम भूमिका..सबसे पहले डाकघर और डाक बंगला चौराहा फहराया गया था तिरंगा

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बरबीघा:-देश को आजादी दिलाने में बरबीघा के वीर सपूतों ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.महात्मा गांधी द्वारा मुंबई अधिवेशन में 8 अगस्त 1942 को आहूत की गई अगस्त क्रांति में बरबीघा के युवाओं ने भी बढ़-चढ़कर अपनी भागीदारी निभाई थी. क्रांति के दौरान माउर गांव निवासी जगदीश प्रसाद सिंह शेरपर गांव निवासी कैलाश प्रसाद सिंह,राजेंद्र प्रसाद सिंह आदि द्वारा सबसे पहले 16 अगस्त 1942 को डाकघर और डाक बंगला चौराहे पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को फहराया गया था. कहां जाता है कि इन क्रांतिकारियों के भय से बरबीघा थाना उस समय 7 दिनों तक बंद रहा था. आंदोलन को कुचलने के

लिए 23 अगस्त 1942 को लगभग एक दर्जन अंग्रेजी सैनिकों ने बरबीघा के नासिबचक मोहल्ला के भगवती चरण वर्मा एवं तेउस गांव निवासी तथा बरबीघा के प्रथम विधायक रहे श्री कृष्ण मोहन प्यारे सिंह को गिरफ्तार कर लिया था. हालांकि इसके बाद भी यह कारवां नहीं रुका था. अन्य युवा भी स्वतंत्रता के आंदोलन में शामिल होते चले गए थे.



जब वकालत छोड़ स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे श्री बाबू

देश की स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के सिरमौर कहे जाने वाले बरबीघा के माउर ग्राम निवासी डॉ श्री कृष्ण सिंह ने भी वकालत छोड़ कर देश की आजादी के लिए बड़ी लड़ाई लड़ी थी. श्री बाबू की पहली मुलाकात महात्मा गांधी से वर्ष 1916 में हुई और उसके बाद देश की स्वतंत्रता के आंदोलन में पूरी तरह से कूद पड़े थे.1922 में पहली बार जेल भी गए थे. 1923 में वह ऑल इंडिया कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की और देश की आजादी में बिहार से नेतृत्व करने की गौरवशाली भूमिका निभाई.

17 साल की उम्र में जगदीश प्रसाद सिंह को जाना पड़ा था जेल

देश के स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाले बरबीघा के माउर ग्राम निवासी जगदीश प्रसाद सिंह को अंग्रेजों ने वर्ष 1927 में महज 17 साल की उम्र में जेल में डाल दिया था. लेकिन उनके मन में उठी क्रांति की ज्वाला शांत नहीं हुई. अगस्त क्रांति के दौरान वे बरबीघा के डाकघर और डाक बंगला पर राष्ट्रीय ध्वज लहराने में अन्य साथियों के साथ अपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.यही नहीं 1930 में गांधीजी के नमक आंदोलन में भी साथ निभाया और जीवन पर्यंत बिना नमक के भोजन करते रहे थे.

जब राजेंद्र प्रसाद सिंह को गंवानी पड़ी थी अपनी हाथ.

देश को आजादी दिलाने के लिए बरबीघा के युवा हर तरह के हथकंडे अपनाने के लिए आतुर थे.इसी कड़ी में अंग्रेज अफसर के पटना यात्रा को बाधित करने के लिए स्वतंत्रता सेनानी राजेंद्र प्रसाद सिंह ने बम विस्फोट किया था.जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर उनका बाया हाथ काट दिया गया था.इस प्रताड़ना के बाद भी अंग्रेजों ने उन्हें कई वर्षों तक बक्सर की जेल में बंद रखा था. यही नहीं इस घटना के बाद शेखपुरा शहर के महादेव नगर स्थित लुलहि बगीचा में सभा कर रहे नौ क्रांतिकारी साथियों को अंग्रेजी सैनिकों ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था. हालांकि इस दौरान कुछ क्रांतिकारी साथी भागने में सफल रहे थे. पकड़े गए क्रांतिकारियों में से जीयनबीघा गांव निवासी रामेश्वर महतो तथा मेदनी शर्मा को एक-एक वर्ष की सजा सुनाई गई थी.कहा जाता है कि इस घटना के बाद भी बरबीघा में स्वतंत्रता आंदोलन की चमक फीकी नहीं पड़ी थी.

बरबीघा प्रखंड से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले सेनानियों के नाम

स्वतंत्रता आंदोलन में बरबीघा प्रखंड से भाग लेने वालों में डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह डॉक्टर कृष्ण मोहन प्यारे सिंह के अलावा राजेंद्र प्रसाद,भगवान दास गुप्ता, लाला सिंह, सीताराम माहुरी, परमानंद मदूरी, केशव कहार, दशरथ सिंह,शिवप्रसाद लाल माधुरी, कैलाश सिंह, रक्षा सिंह, छोटन पासवान,शूकर, शालिग्राम सिंह, सुरमा सिंह,सत्यनारायण सिंह, भुवनेश्वरी देवी, आत्माराम, जंग बहादुर सिंह,धणेश्वर सिंह, लालजी सिंह,बलदेव महतो, रामदेव प्रसाद सिंह,शिवनारायण उर्फ गुरुजी आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

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