संविधान को ताक पर रखकर इंदिरा गांधी ने आधी रात को देश में लगाई थी इमरजेंसी..60 लाख से अधिक लोगों की कर दी गई थी जबरन नसबंदी.पढ़े आपातकाल के कारण और उसकी काला सच की पूरी जानकारी

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Desk:- इतिहास के पन्नों में दर्ज 25 जून की तारीख भारत के लिहाज से एक महत्वपूर्ण घटना की गवाह रही है.आज ही के दिन 1975 में देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की गई थी. रविवार को इस आपातकाल के 48 साल पूरे हो गए, लेकिन लोगों को आज ही उसका दंश याद है.आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकार छीन लिए गए थे.लोगों पर बेइंतहा जुल्म ढाए गाये. यहां तक की प्रेस की आजादी भी छीन ली गई.भारत में दमन के अभूतपूर्व दौड़ की शुरुआत हुई.

हालांकि देश में आपातकाल के लक्षण एक पखवाड़े पहले ही सामने आने लगे थे. शुरुआत हुई थी 12 जून 1975 से. दरअसल उस समय इंदिरा गांधी के सामने तीन दुखद घटना सामने आई थी. इंदिरा गांधी के करीबी सलाहकार डीपी धर का देहांत, इलाहाबाद हाई कोर्ट का इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला और गुजरात विधानसभा में कांग्रेस की करारी हार. दरअसल 12 जून 1975 के फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि इंदिरा गांधी ने लोकसभा चुनाव में गलत तौर-तरीके अपनाए थे. इंदिरा दोषी करार दी गई और उनका चुनाव रद्द कर दिया गया.



इसके बाद तमाम विपक्षी पार्टियों ने एक सुर में इंदिरा गांधी की इस्तीफा की मांग शुरू कर दी. उस दिन के बाद जो प्रदर्शन इंदिरा गांधी के समर्थन में हो रहे थे वह यह जानने के लिए साफ संकेत थे कि प्रधानमंत्री का इरादा क्या है. इंदिरा गांधी को अपनी कुर्सी बचानी थी. इसी दौरान 25 जून की शाम को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की बड़ी रैली हुई. इंदिरा गांधी जो पहले से ही भारी दबाव में थी, जेपी की इस रैली से पूरी तरह से तिलमिला उठी.

25 जून को शाम 5:00 बजे इंदिरा गांधी और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय राष्ट्रपति भवन पहुंचे और उन्हें सारी परिस्थितियां समझाई तथा उन्हें मनाने में कामयाब रही.दोनों वापस लौटे और आपातकाल के कागजात तैयार कराए गए. तब तक रात के साढे ग्यारह पौने बारह बज चुके थे. राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने उन आपातकाल की घोषणा वाले कागजात पर हस्ताक्षर कर दिए और देश में काली रात की शुरुआत हो गई.

25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक क्या-क्या हुआ जानिए

देश में तीसरी बार आपातकाल लगाया गया था इससे पहले 1968 में भारत-चीन और 1971 में भारत-पाकिस्तान जंग के दौरान इमरजेंसी लगाई गई थी.पूरे 21 महीने तक देश में आपातकाल रहा हालांकि इस दौरान संजय गांधी इसे कई साल तक लगाए रखना चाहते थे.एक साल के भीतर देश भर में 60 लाख से ज्यादा लोगों की नसबंदी कर दी गई.इनमें 16 साल के किशोर से लेकर 70 साल के बुजुर्ग तक शामिल थे.बिना किसी सुनवाई के एक लाख से ज्यादा लोगों को जेल में डाल दिया गया.इसमें देश के कई बड़े नेता और पत्रकार भी शामिल थे.लोगों के बीच पूरी तरह से दहशत व्याप्त हो गई थी.

आपातकाल के बाद देश में बुरी तरह से हार गई थी कांग्रेस

आपातकाल लागू करने के लगभग 2 साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग करने 1977 में चुनाव करने की सिफारिश कर दी. चुनाव में आपातकाल लागू करने का फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ. खुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गई. जनता पार्टी उस समय भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 352 से घटकर 154 पर सिमट गई. आजादी के 30 वर्ष के बाद केंद्र में किसी गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ. कांग्रेस से उस समय उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब,हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. कुल मिलाकर कहें तो आपातकाल की बातें सुनकर आज के वर्तमान युवा पीढ़ी भी सिहर उठते हैं

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