Desk:-बिहार के दो बार के मुख्यमंत्री रहे जननायक के नाम से मशहूर कर्पूरी ठाकुर को केंद्र सरकार द्वारा भारत रत्न देने की घोषणा करने के बाद से बिहार की सियासत गर्म हो गई है.पूर्व भाजपा नेता ने सुधीर कुमार शर्मा ने केंद्र सरकार के जहां इस कदम की जमकर सराहना किया वहीं बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ श्रीकृष्ण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा नहीं करना ऐतिहासिक अन्याय भी बताया है.
उन्होंने अपने फेसबुक बल पर लिखा कि केंद्र सरकार ने जननायक कर्पूरी ठाकुर को मरणो उपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला लिया गया है. इसका हम स्वागत करते हैं.लेकिन बिहार केसरी डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह को भारत रत्न नहीं मिलना ऐतिहासिक अन्याय है. जिसको सुधारना नरेंद्र मोदी सरकार की जिम्मेवारी थी जो नहीं हुआ.इससे बिहार में जातीय सोंच से इतर बिहारी स्वाभिमान का भाव रखने वाले बड़े समूह को ठेस पहुंची है.
किसी वंचित जाति में जन्म लेकर अपने उपेक्षित समूह के उत्थान के लिए कुछ करना प्रसंशनीय हो सकता है लेकिन समाज के सर्वशक्ति संपन्न ताकतवर जाति में पैदा लेने वाले डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह ने वंचितों के कल्याण के लिए जो किया वह ज्यादा अभिनंदनीय है. जिस जाति के बिहार में सर्वाधिक जमींदार थे उस जाति के व्यक्ति ने देश में पहला जमींदारी उन्मूलन कानून लागू कर किसानों मजदूरों को दमन से मुक्ति दिलाया. समाज के सर्वोच्च शिखर पर बैठी हुई जाति का व्यक्ति श्री बाबु ने देवघर मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए अपने परिवार के विरोध की भी परवाह नहीं किया.सत्ता ईमानदारी की सबसे बड़ी कसौटी होती है.
17 वर्षों से ऊपर बिहार का मुख्यमंत्री रहा व्यक्ति पटना में ही नहीं अपने पैतृक गांव में भी एक घर तक नहीं बनाया.मजबूरी में वंशवाद नहीं करना एक बात है.लेकिन जिस जाति की बहुलता के अनेकों विधानसभा और लोक सभा हों उसने अपने बेटों या परिवार को राजनीति में आने नहीं दिया यह स्वर्णिम उदाहरण है.अपनी जाति का पीए से लेकर स्टाफ तक एक आदमी नहीं रखने का उदाहरण श्री बाबु ने ही प्रस्तुत किया. अपने चुनाव क्षेत्र में कभी प्रचार करने नहीं जाने का देश में कोई दूसरा उदाहरण श्री बाबु के अलावा नहीं है. ऐसे महान भभूति को अपेक्षित करना केंद्र सरकार की ओछी मानसिकता को भी दर्शाता है.
बिहार केसरी डॉ श्रीकृष्ण सिंह भारत रत्न के स्वाभाविक हकदार है. इससे उनको वंचित रखना बिहारी स्वाभिमान के खिलाफ है.वे मुख्यमंत्री भले बिहार के रहे लेकिन उनका कद किसी राष्ट्रीय नेता से विराट था.देश में कोई उदाहरण नही है कि 1937 में प्रधानमंत्री(प्रीमियर)बना व्यक्ति अपने जीवन पर्यन्त(1961) मुख्यमंत्री रहा हो.उनके साथ 1937 मे संयुक्त प्रान्त(उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के कुछ भाग) के प्रधानमंत्री बने गोविन्द वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री 1954 तक ही रहे.फिर केंद्रीय गृह मंत्री बन कर 1961 में दिवंगत हुए.
उनको भी 1957 में ही भारत रत्न मिल गया.1937 में मद्रास प्रेसिडेंसी के प्रधानमंत्री बने चक्रवर्ती राजगोपालाचारी दुबारा 1952-54 में मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री रहे.उनको 1954 में ही भारत रत्न मिल गया था।.असम के प्रथम मुख्यमंत्री रहे गोपीनाथ बरदोलाई को 1999 में भारत रत्न मिला.पश्चिम बंगाल के 1948 से लेकर आजीवन मुख्यमंत्री रहे विधानचंद्र राय को 1961 में ही भारत रत्न मिल गया.1953-63 तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे के. कामराज को 1976 में भारत रत्न मिला.श्री बाबु के साथ बिहार के राज्यपाल(1957-62) रहे डॉ जाकिर हुसैन को 1963 में भारत रत्न मिला.
1952-56 मुंबई प्रान्त के मुख्यमंत्री रहे मोरारजी देसाई को 1991 में भारत रत्न मिला।उनके समकालीन पंडित नेहरू, सरदार पटेल, राजेन्द्र प्रसाद सबको भारत रत्न मिल चुका है.बाकी के भारत रत्न प्राप्त लालबहादुर शास्त्री समेत सभी लोग श्री बाबु से जूनियर ही हैं.1988 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे एमजी रामचन्द्रन को भी भारत रत्न मिल गया.
भारत रत्न प्राप्त उपरोक्त किसी भी नेता से श्री बाबु का व्यक्तित्व कमतर नहीं था.आजीवन अपराजेय श्री बाबु अपने चुनाव क्षेत्र में वोट नहीं माँगने वाले देश के इकलौते नेता हैं.जबकि देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता पंडित नेहरू को भी फूलपुर में वोट मांगना पड़ता था.उतना बड़ा अध्ययनशील और विद्या व्यसनी देश में कोई दूसरा राजनेता नहीं था.उनके निजी स्टाफ में और सर्वोच्च प्रशासन में उनकी जाति का कोई व्यक्ति नहीं था जो उनके सिद्धान्त के हद तक जातिनिरपेक्ष होने का गवाह है.
दलितों के प्रति उनके प्रेम का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण देवघर के मंदिर में खुद जाकर दलितों के साथ पूजा करना है.सर्वप्रथम देश में जमींदारी उन्मूलन का काम श्री बाबु ने किया।विकास के प्रति प्रतिबद्धता का नजीर एचईसी हटिया, सिंदरी, बोकारो इस्पात संयंत्र, पतरातू थर्मल पावर,बरौनी (रिफाइनरी, फर्टिलाइजर,और थर्मल पावर),डालमिया नगर उद्योग समूह,अशोक पेपर मिल, दर्जनों चीनी कारखाने हैं। उनकी ईमानदारी संदेह से परे थी.गाँव के पुश्तैनी घर का खपरैल नही उतरा, आजीवन मुख्यमंत्री रहे व्यक्ति का पटना में घर नहीं बना।कोई बैंक बैलेंस नहीं, मरने पर तिजोरी राज्यपाल की उपस्थिति में खोला गया तो 24500 रुपये वसीयत के साथ निकले जिसमे परिवार के लिए एक रुपया नहीं.ऐसे विदेह जनक के समान अनासक्त कर्मयोगी थे बिहार केसरी.
ऊपर वर्णित कुछ उदाहरण ही काफी हैं यह बताने के लिए कि श्री बाबु का व्यक्तित्व किसी भी नेता से कम नहीं बल्कि विराट था.उनको भारत रत्न नहीं मिलना बिहार और बिहारियों का अपमान है.इस मुहिम में सबको जुड़ना चाहिये और बिहारी स्वाभिमान की बात करने वाले मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को भी इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाकर यश का भागी बनना चाहिए.
मेरे यह लिखने के पीछे नई पीढ़ी को यह जानकारी देना कि एक महामानव को कैसे भारत रत्न जैसे स्वाभाविक पुरस्कार से वंचित रखा गया है? यह लड़ाई नेताओं के भरोसे नहीं बल्कि आम जनता के सहयोग से लड़ी जानी है. श्री नरेन्द्र मोदी की केन्द्र सरकार को पहले की सरकारोँ का भूल सुधार करना चाहिए.भूमिहार-ब्राह्मण सामाजिक फ्रंट श्री बाबु को भारत रत्न देने की मांग को लेकर पुरे बिहार में व्यापक हस्ताक्षर अभियान चलाएगा और महामहिम राज्यपाल के माध्यम से एक करोड़ लोगों के हस्ताक्षर के साथ मांग पत्र राष्ट्रपति को सौंपा जाएगा.