*पति की कैंसर से मौत के बाद जूस बेच कर बच्चों को अफसर बनने का ख्वाब देखने वाली महिला का हिम्मत देख आप भी करेंगे सलाम*

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Barbigha:-ऐसा कहा जाता है कि इंसान के जीवन में कब बुरा वक्त आ जाए उसके बारे में बता पाना बहुत ही मुश्किल है.ऐसे हालातों से लड़कर अपनी हिम्मत से मुकाम हासिल करने वाले एकाध लोग ही होते हैं.ऐसे ही हिम्मत वाली एक महिला है रूबी देवी जिसके बारे में जानकर आप भी उसकी हिम्मत हो सलाम करेंगे. दरअसल 35 साल की रूबी देवी जूस बेच कर अपने तथा अपने बच्चे का भरण पोषण कर रही है. रोज सुबह 10:00 बजे घर का काम निपटा कर बरबीघा नगर क्षेत्र के पोस्ट ऑफिस के पास ठेला के साथ रूबी देवी पहुंच कर जूस बेचने में जुट जाती है.अपने बच्चों को बड़ा अफसर बनाने का

ख्वाब देखने वाली रूबी देवी बरबीघा नगर क्षेत्र के छोटी संगत मोहल्ला की रहने वाली है.पांच वर्ष पूर्व तक रूबी देवी का जीवन हंसी खुशी के साथ व्यतीत हो रहा था.परंतु अचानक से वक्त ने करवट लिया और उनके शराबी पति शंकर प्रसाद की लिवर कैंसर के कारण मौत हो गई. पति के देहांत के बाद मानो रूबी देवी के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. पति के जाने के बाद घर चलाने में भी परेशानी होने लगी.नारी उत्थान और नारी सशक्तिकरण का बात करने वाले समाज के किसी भी ठेकेदार ने उसकी सुध नहीं ली. 9 वर्षीय सुमित कुमार और 2 वर्षीय राजा कुमार नामक दो पुत्रों के साथ महिला खुद को असहाय महसूस करने लगी. लेकिन इस कठिन परिस्थिति में भी महिला ने हिम्मत नहीं हारी और सबसे पहले घर-घर दाई का काम करना शुरू किया. वक्त तेजी से बीता और महिला ने चंद रुपए इकट्ठा करके खुद का व्यवसाय करने का मन बनाया. इस दौरान महिला ने कभी भी बच्चों की पढ़ाई बाधित ना



बरबीघा के पोस्ट ऑफिस चौक पर जूस बेचती महिला

हो इसका पूरा ध्यान भी रखा.महिला रूबी देवी अब पति के गम को बुलाकर अपने दो बेटों को अफसर बनाने का ख्वाब देखते हुए प्रत्येक दिन जूस बेचने का काम कर रही है. महिला ने बताया कि शुरू शुरू में समाज का काफी ताना-बाना झेलना पड़ा.लेकिन वह समाज के ताने-बाने से बेपरवाह अपनी मंजिल पाने की जिद पर अड़ी है. बड़ा बेटा सुमित कुमार मैट्रिक में पड़ता है.वह भी कभी-कभी मां के काम में हाथ बंटाता है.रूबी देवी का हौसला बताता है कि अगर महिला विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत से काम ले तो वह भी समाज में कदम से कदम मिलाकर चल सकती है. रूबी देवी आज पैसे महिलाओं के लिए एक मिसाल बनी है, जो खुद को अबला और असहाय समझ कर इस पुरुष प्रधान समाज से लड़ना नहीं चाहते.

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