Sheikhpura: बरबीघा में गजबे खेल होगा…ये हम कह तो रहे हैं लेकिन आप देख भी रहे होंगे…घड़ी की सुई के कांटे को आप घुमाकर देखिए…कुछ याद आया…याद आ ही गया होगा…पिछले कुछ दिनों से बरबीघा के कई दिग्गज नेता अपना कैंपेन चला रहे थे. किसी ने पुआ पकवान खिलाया…किसी ने चिकन कस्सा का भोज करवाया…कहने को तो कुछ लोग यह भी कहते हैं कि फलाने नेताजी ने तो पकड़ पकड़ के किरिया भी खिलाया कि एक बार हमको भी मौका दे दीजिए लेकिन समय का चक्र ऐसा बदला कि सब धरा का धरा रह गया और अब तय हुआ कि बॉस हम रहेंगे लेकिन बरबीघा की गद्दी पर बैठेंगे कोई और…
गांव में एगो कहावत सुने होंगे…गाहे बगाहे किसी दलान पर किसी चर्चा में कोई बुजुर्ग कह ही देते हैं…अरे जाए दीजिए फलना बाबू केतना उड़ेगा…उड़े दीजिए..नया नया बथान में आया है लेकिन भूला जाता है पगहबा हमरे हाथ में है. बस वहीं किस्सा बरबीघा में होने जा रहा है…अब सारे दिग्गज नेता अपना अपना समर्थित उम्मीदवार को मैदान में उतार रहे हैं. वैसे लोकतांत्रिक तरीके से देखा जाए तो पेपर वर्क के हिसाब से कुछ भी गलत नहीं हो रहा है.
हालांकि बरबीघा में कुछ ऐसे भी कैंडिडेट हैं जो अपने दम पर सभापति के पद पर काबिज हो सकते हैं लेकिन बरबीघा का जातिगत गणित कुछ ऐसा है कि राजनीति के जो यहां के पुराने माहिर खिलाड़ी हैं उनको चुनावी मैदान में एकदम से आप पटखनी नहीं दे सकते है. वैसे जनता के पास 3 ऑप्शन हैं. पहला तो ये है कि पुराने ढर्रे पर जो बरबीघा की राजनीति चल रही है उसे ही एक्सेप्ट कर लें. दूसरा ये है कि बदलाव की तरफ का रास्ता देखें और तीसरा जो काफी सुगम है वो ये कि वैसे कैंडिडेट के साथ जाएं जो सच में काम करने वाला हो वो भले ही फिलहाल किसी का समर्थित उम्मीदवार हो लेकिन जिसका नेचर ही काम करने का होगा वो काम जरूर करेगा….