
बरबीघा:-नगर परिषद बरबीघा क्षेत्र का नर्सरी मोहल्ला एक समय में जागो मांझी के भूखे मरने संबंधी खबरों को लेकर काफी चर्चित हुआ था.उसी मोहल्ले में एक बाप और बेटे की हालत भी कुछ इस तरह हो गई है कि वह भूखे मरने की कगार पर पहुंच चुके हैं.मूल रूप से शेरपर गांव के रहने वाले साधु सिंह उर्फ कांग्रेस सिंह और उनका पुत्र गुड्डू कुमार पिछले तीन महीने से नर्सरी मोहल्ला में एक मचान

बनाकर रह रहे हैं.दोनों बाप बेटा दाना दाना को मोहताज हैं.कई दिनों से दोनों खाना तक नहीं खाए हैं. गुड्डू कुमार का दिल्ली में मजदूरी करने के दौरान तीन महीना पहले पैर टूट गया है.जैसे तैसे वह टूटा पैर लेकर इस आस से गांव पहुंचा की समाज का कोई व्यक्ति उसकी मदद कर देगा. लेकिन जब गांव और समाज के किसी भी समृद्ध लोगों ने उसकी मदद नहीं की तो दोनों नर्सरी मोहल्ला के दलित बस्ती में शरण ले लिया.टूटा पैर लेकर ही गुड्डू कुमार पिछले तीन महीनों से घुट घुट कर जी रहा है.मांझी समुदाय के लोगों ने ही उनके लिए एक झोपड़ी का निर्माण कराया जिसमें दोनों बाप बेटे बदहाल वाली जिंदगी जी रहे हैं. गुड्डू कुमार ने बताया कि वह मजदूरी करके अपने और अपने बाप का पेट पाल रहा था. पैर टूट जाने की वजह से अब वह मजदूरी करने में भी सक्षम नही है.झोपड़ी में बिछावन के नाम पर दोनों बाप बेटे के पास सिर्फ एक चादर है. गुड्डू कुमार ने बताया कि इस कड़कती ठंड में जैसे-तैसे जिंदगी कट रही है.शाम में पिताजी सब्जी मंडी जाते हैं.सड़क पर फेंकी हुई सब्जियों को चुनकर लाते हैं. उसी को बना कर दोनों बाप बेटे पिछले एक महीने से खा रहे हैं.कभी कभार कोई मांझी समुदाय के लोग ही रोटी या चावल दे देते हैं. प्रभात खबर के संवादाता उमेश कुमार जब उनसे उनका
हाल-चाल पूछने पहुंचे तो दोनों बाप बेटा फफक फफक कर रोने लगे.उमेश कुमार की पहल पर ही एक डीलर के पास फिलहाल दोनों को 15 किलो चावल और कुछ चना दिया गया है.दोनों बाप बेटा के पास ना तो रहने के लिए घर ना ही राशन कार्ड है. वहीं उनके ग्रामीणों ने बताया कि एक समय दोनों बाप बेटा के पास घर भी था और कुल 6 बीघा जमीन भी थी. लेकिन आर्थिक तंगी और बीमारियों की वजह से धीरे-धीरे करके सभी जमीन और घरबार तक बिक गया.अब स्थिति यह है कि अगर जिला प्रशासन ने या समाज ने ध्यान नहीं दिया तो दोनों बाप बेटे भूखे मर सकते हैं.


