रेलवे द्वारा अधिग्रहित भूमि के मुआवजे में मनमानी का आरोप..किसानों ने बैठक करके आंदोलन करने का लिया निर्णय

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बरबीघा:-शेखपुरा से बरबीघा बिहारशरीफ दनियावां होते हुए पटना तक की निर्माणधीन रेलवे लाइन को लेकर रेलवे द्वारा अधिग्रहित किए गए भूमि के मुआवजे का मुद्दा बुधवार को एकबार फिर से गरमा गया. दरअसल इस बार रेलवे के द्वारा किसानों को बिना सूचित किए हुए ही जमीन की मापी कराने का निर्णय ले लिया गया. इस बात से नाराज रेलवे को जमीन देने वाले सैकड़ों किसानों ने बुधवार को एक आपात बैठक करते हुए आंदोलन करने का निर्णय लिया है. किसान रंजीत कुमार की अगुवाई में यह बैठक बरबीघा नगर क्षेत्र के परसोबीघा देवी मंदिर में किया गया. दरअसल किसान पिछले आठ वर्षों से उचित मुआवजे के लिए जिला प्रशासन एवं न्यायालय की चौखट पे दस्तक देते देते थक चुके है. मीडिया से बातचीत करते हुए किसान रंजीत कुमार ने भू-अर्जन विभाग सहित जिला प्रशासन पर सैकड़ों किसानों और उनके परिजनों के साथ हकमारी करते हुए मनमानी का आरोप लगाते हुए विरोध जताया.बैठक में शामिल महेश कुमार,शशिभूषण कुमार,संजय

चौधरी,धर्मवीर कुमार, सुरेश प्रसाद, रेणु देवी, महेंद्र यादव, भोला प्रसाद, विपिन चौधरी, वरुण कुमार, रंजीत कुमार , राजेश कुमार ,शांति देवी, शैला देवी, सरिता देवी, आदि किसानों ने पदाधिकारियों द्वारा न्यायालय के निर्णय की अवहेलना करते हुए जान बुझ कर किसानों के हित की अनदेखी करने और औने पौने दामों में किसानों के जीवन यापन के एक मात्र जरिया उनके खेत और मकान की जमीन का जबरदस्ती अधिग्रहण करने का आरोप लगाया है.



क्या है मामला?

मौके पर मौजूद युवा किसान रंजीत कुमार ने बताया की बरबीघा नगर परिषद अंतर्गत नारायणपुर सहित अन्य मौजों के सैकड़ों किसानों की अधिग्रहित जमीन का मुआवजा दिए बगैर चुपके से नापी कराकर निर्माण कराने का प्रयास किया जा रहा है.रंजीत कुमार ने बताया कि विभाग ने 25 फरवरी से लेकर 31 मार्च तक अधिकृत जमीन की नापी कराने का निर्णय लिया है. विभाग की मनमानी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस बारे में किसानों को सूचित करना भी जरूरी नहीं समझा गया.रंजीत ने कहा की रेलवे लाइन जिला प्रशासन द्वारा उखदी गांव, पुनेसरा, नारायणपुर एवं बरबीघा मौजा अंतर्गत निर्माणधीन रेलवे लाइन के लिए विभाग द्वारा अधिग्रहित जमीन की मुआवजा राशि न्यायालय आदेश के विरुद्ध देने की बात कर रहे हैं.इस बात को लेकर किसान 2015 में हाईकोर्ट भी गए थे.हाई कोर्ट द्वारा 2014 ई० के अनुसार के अधिकतम डेढ़ लाख प्रति डिसमिल रेट के साथ-साथ उस पर दिए जाने वाले इंसेंटिव के साथ भुगतान का आदेश देते हुए किसानों के हक में फैसला दिया था.जबकि भू अर्जन पदाधिकारी द्वारा 2011 ई० के अनुसार न्यूनतम रेट लगभग ₹10000 प्रति डिसमिल जमीन की मुआवजा देने की कोशिश की जा रही है.किसानों ने बताया की 2014 में आवासीय भूमि का रेट 1.5लाख/डिसिमिल है जबकि व्यवसायिक भूमि का 5.25 लाख /डिसिमल रेट है.मुआवजा के रेट निर्धारण को लेकर हैं किसान और विभाग पिछले 8 साल से आमने-सामने हैं.

आक्रोशित किसानों ने कुछ भी कर गुजरने की दी धमकी

आक्रोशित किसानों की बैठक में विरोध जताने एवं निर्माण बाधित रखने के निर्णय के बाद पत्रकारों से बात करते हुए युवा किसान रंजीत कुमार ने बताया की ये जमीन हम किसानों के जीवन यापन का एकमात्र जरिया है । बिना उचित मुआवजे के औने पौने दाम पर देकर खेत और मकान की जमीन देकर रोड पे आने से पहले किसान कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं.किसानों ने बताया कि जिस जमीन को रेलवे लेना चाह रही उसी जमीन का कुछ भाग बरबीघा में बनने वाले बाईपास सड़क के दौरान एनएचएआई द्वारा भी लिया गया था.एनएचएआई के दौरान ₹1200000 प्रति कट्ठा के हिसाब से किसानों को मुआवजा दिया गया था.जबकि रेलवे द्वारा मात्र लगभग ₹30000 प्रति कट्ठा के हिसाब से मुआवजा दिया जा रहा है. ऐसे में किसान किसी भी कीमत पर रेलवे को अपने घर में नहीं देंगे.

कहते हैं भू अर्जन पदाधिकारी

मामले को लेकर जिला भू अर्जन पदाधिकारी धर्मेश कुमार ने कहा को विभाग पे किसानों द्वारा लगाया जा रहा आरोप सर्वथा गलत और निराधार है.विभाग की पूरी सहानुभूति किसानों के साथ है और उचित मुआवजा भुगतान को लेकर तत्पर भी है.मुआवजा को लेकर किसान दो साल पहले ही कोर्ट में अवमानना दायर कर चुके हैं ,पर कोर्ट द्वारा विभाग को न तो कार्य स्थगन आदेश दिया है न तो मुआवजा राशि पे आपत्ति जताई गई है.इसीलिए किसानों को क्षेत्र और रेलवे विकास कार्य में सहयोग देना चाहिए.

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