Barbigha:-भाई बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक करमा-धरमा पर्व की पूर्व संध्या पर बाजार में खरीदारी करने के लिए लोगों की काफी भीड़ देखी गई.बरबीघा बाजार में कर्मा पूजा को लेकर दिन भर भीड़ उमड़ी रही.इस पूजा को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में खासा उत्साह रहता है.करमा पूजा को लेकर महिला व युवतियां चूड़ी, बिदी समेत अन्य सौंदर्य सामग्री खरीदने में मशगूल दिखी.साथ में फल सजावट व पूजन सामग्री खरीदा गया.कर्मा करने वाली महिलाओं ने बताया कि मनुष्य नियमित रूप से अच्छे कर्म करे और भाग्य उसका साथ दे,
इसी कामना से करम देवता की पूजा की जाती है.यह पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है.इस पर्व के माध्यम से बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु व समृद्धि की कामना के साथ रिश्ते का फर्ज की याद दिलाती हैं.
बरबीघा के शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में युवतियां कर्मा गीत व चौहट गीत गाकर अपने भाईयो के लिए वरदान तथा किसानों के लिए भगवान से बरसात की मांग करती है.कर्मा को प्राकृतिक पूजा भी कहा जाता है.इसमें सबसे ज्यादा वनस्पति पौधों की जरूरत होती हैं.पूजा करने के लिए झुर, करमी के साग, दही, बेलवंधा के पौधा फुल आदि का उपयोग किया जाता है.
लोक कथा के अनुसार कर्मा धर्मा नाम के दो भाई थे.जिनमें धर्मा की पत्नी धर्मात्मा और कर्मा की पत्नी कटिल प्रवृति की थी. कर्मा की पत्नी की कुटिल प्रवृत्ति के कारण गांव में इसके प्रति लोग आक्रोशित थे. इसी से दुखी होकर कर्मा दूर देश चले गए.इसके बाद गांव में अकाल पड़ा और महामारी फैल गई.जिससे धर्मा की पत्नी को ज्ञात हुआ कि उसके उसी कर्म का फल है और वह सदाचारी बन गई.इसके बाद धर्मा अपने भाई को लेने जंगल की ओर चले गए. जहां पहले उसे एक नदी मिली.वह नदी शापित था.जो नदी के पानी को छूता था, नदी का पानी सूख जाता था.उसके बाद वह आगे बढ़ा नदी की समस्याओं को लेकर एक गाय मिली. गाय भी अपनी समस्या बताते हुए कहा कि उसका थन को छूते ही दूध गायब हो जाता है.इसके बाद एक बुढि़या मिली.बुढि़या ने अपने घर की समस्या बताई.सभी की समस्या सुनते सुनते धर्मा कर्मा के पास पहुंचा और सारी बातें बताई.
इसके बाद करमा गांव वापस लौटने को तैयार हुए और लौटने के क्रम में धर्म सभी की समस्या का समाधान करते हुए अपने घर पहुंचे। किवदंतियों के अनुसार इस कहानी से कर्मा धर्मा नाम का त्यौहार का प्रचलन हुआ. जो त्यौहार झारखंड बिहार उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है.